रिश्तों के दृढ़ बंधन में कौन आ गया ?
देखा तो जाना हाथो में स्मार्ट फ़ोन आ गया।
देखा तो जाना हाथो में स्मार्ट फ़ोन आ गया।
शाम चाय पर होने वाली, वो बात रह गयी
गरमी के रातों वाली, मुलाक़ात रह गयी
चिट्ठी में आने वाला प्रेम, फ़ेल हो गया
छोटी सी बात पर भी अब ईमेल हो गया
क्या हो रहा है सामने? इसकी सुध नहि रहती
” पापा चलो ना घुमने !” बेटी, अब नहि कहती
घर के वातावरण में यह कैसा मौन आ गया ?
देखा तो जाना हाथो में स्मार्ट फ़ोन आ गया।
थे वो भी दिन जब ऐसा यहाँ हाल नहि था
हम थे सम्पन्न जब जेब में माल नहि था !
सब लोग अपनो से तब मिलने जाते थे
आते थे मित्र, हँसते थे, क़िस्से सुनाते थे
अब “Like” तो करते है, पर वो बात कहा है ?
“Group” में पड़े है सारे, मुलाक़ात कहा है ?
तकनीक का लगा मेला, या सन्नाटा छा गया ?
देखा तो जाना हाथो में स्मार्ट फ़ोन आ गया …