कविता – बड़े हो तुम | Inspirational poem
Poem
बड़े हो तुम बड़े रहो
बदल गया अगर सब कुछ
तो यू ना तुम डरे रहो
बड़े हो तुम बड़े रहो
निराश ना खड़े रहो
अकेले ना पड़े रहो
उजाले की कमान लो
धरा को तुम सम्भाल लो
तुम अपनी राह बांच लो
खुद ही से जा के जाँच लो
बनाओ अपनी ही निशा
बनाओ अपनी ही सहर
बनाओ अपनी ही दिशा
बनाओ अपने ही नहर
तूफ़ान में खड़े रहो
बड़े हो तुम बड़े रहो
सभी को अपने हाँथ दो
सभी के दुःख में साथ दो
सभी की आँखें खोल दो
सभी को जाकर बोल दो
की लोभ पाप त्याग दे
उनकी चिता को आग दे
जुर्म की नज़र में शर्म हो
बस एक धर्म कर्म हो
खुद में सुधार लाएँगे
सब आप सुंदर पाएँगे
सभी को इक विश्वास हो
सबको विजय की प्यास हो
तुम ऐसी राह पर चले
तो कष्ट बहुत पाओगे
मगर अखंड सत्य है
हर युद्ध जीत जाओगे
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