Sharing a poem I wrote a few years back when I was feeling lonely and low. A recent incident reminded me of this poem. If you like this poem, do let me know in the comments section.
कविता – दूर गगन के एक सितारे से
दूर गगन के एक सितारे से मैंने दोस्ती कर ली
इस जहां में दिल नहीं लगा तो उसी से दिल्लगी कर ली
दूर गगन के एक सितारे से मैंने दोस्ती कर ली
दिन में ना सही शाम को मेरे साथ रहता है
सुनता रहता है मेरी बातें, भले कुछ नहीं कहता है
अपनी सर्द गर्माहट से मेरे ज़ख्मों को सेकता तो है
कुछ करे ना करे मेरी तरफ़ देखता तो है
जब किसी ने अपना आशिक़ ना माना
तो उसी से आशिक़ी कर ली
दूर गगन के एक सितारे से मैंने दोस्ती कर ली
मेरे दिल से निकली बातों पर कुछ तो यह विस्वास करेगा
जो सबने किया, शायद ये ना मेरे साथ करेगा
कम के कम ये रिस्तेदारी तो साकार रहेगी
दूरियाँ ऐसी है कि मोहब्बत बरकरार रहेगी
नज़रंदाज़ होकर सबसे कुछ अलग अपनी ज़िंदगी कर ली
दूर गगन के एक सितारे से मैंने दोस्ती कर ली